Gita Gyan, Divya Gyan || Thought of the Day || Daily Quote

 Gita Gyan since 30 July 2023


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श्री भगवद्गीता जी के 18 अध्याय हैं और यह ज्ञान संस्कृत में श्री कृष्ण जी द्वारा दिया गया था । समय के साथ संस्कृत भा

षा रोजमर्रा की जिंदगी से निकल गई और यह ज्ञान मनुष्य से दूर हो गया। समय-समय पर श्रीमद्भगवद्गीता का साधारण अक्षरों में अनुवाद किया गया। इसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुए मैं यहां श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान को  हरि कृपा से हर रोज एक विचार के रूप में प्रस्तुत कर रही हूँ। उम्मीद करती हूँ कि आप को यह प्रयास पसंद आ रहा है।


नित्य गीता पढ़ने से मन सदैव शान्त रहता है। हमारे सारे नकारात्मक प्रभाव नष्ट हो जाते है। सभी प्रकार की बुराइयों से दूरी स्वतः ही बनने लगती है। हमारा भय दूर हो जाता है और हम निर्भय बन जाते हैं। 



116. *Daily Quote # 116*

आध्यात्मिक अनुभूति ऐसा आनन्द प्रदान करती है जो सकल सांसारिक सुखों से कई गुणा अधिक आनन्द और संतोष प्रदान करता है। संजय ऐसे सुख से प्रमुदित हो रहा था और इसे वह धृतराष्ट्र के साथ भी बाँटता है।

अद्भुत संवाद को ध्यान में रखकर और उसका स्मरण करके उसे दिव्य आनन्द की अनुभूति हो रही है जिससे इस ग्रंथ में निहित ज्ञान की प्रतिष्ठा और भगवान की लीला, जिसका संजय साक्षी था, की दिव्यता प्रकट होती है।





115.

श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास देव संजय के आध्यात्मिक गुरु थे। अपने गुरु की कृपा से संजय को दिव्य दृष्टि का वरदान प्राप्त हुआ था। इसलिए वह हस्तिनापुर के राजमहल में बैठकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर घटित घटनाओं को देख सका। यहाँ संजय स्वीकार करता है कि यह उनके गुरु की कृपा थी जिसके कारण उसे स्वयं योग के स्वामी श्रीकृष्ण से योग के परम ज्ञान का श्रवण करने का अवसर प्राप्त हुआ। 

ब्रह्मसूत्र, पुराणों, महाभारत आदि के रचयिता वेदव्यास भगवान के अवतार थे और वे स्वयं सभी प्रकार की दिव्य दृष्टि की शक्तियों से संपन्न थे। इस प्रकार से उन्होंने न केवल श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए वार्तालाप को सुना बल्कि संजय और धृतराष्ट्र के बीच हुई वार्ता को भी सुना। अतः उन्होंने भगवद्गीता का संकलन करते हुए दोनों के संवादों को भी सम्मिलित किया।





114.. संजय अब अभिव्यक्त करता है कि उनके दिव्य संवादों को सुनकर वह इस प्रकार से अचंभित और स्तंभित हुआ जिससे उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गये जो गहन भक्ति के उत्साह का एक लक्षण है। 

"भक्ति में हर्षोन्माद होने के आठ लक्षण हैं-जड़वत एवं मौन होना, पसीना निकलना, रोंगटे खड़े होना, वाणी अवरुद्ध, कांपना, मुख का रंग पीला पड़ना, आँसू बहाना और मूर्च्छित होना।" संजय भक्तिपूर्ण मनोभावनाओं की इतनी गहन अनुभूति कर रहा है कि दिव्य आनन्द से उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गये।






113.




112.




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110.




109.




108.भक्ति में तल्लीन होने का अवसर पाना भगवान का विशेष वरदान है लेकिन अन्य लोगों को भक्ति में लीन करने के लिए उनकी सहायता करने का अवसर प्राप्त होना उससे भी बड़ा वरदान है जिससे भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है। 


श्री कृष्ण में पराभक्ति करके जो इस परम गोपनीय संवाद-(गीता-ग्रन्थ) को उनके भक्तों में कहेगा, वह उन्हें ही प्राप्त होगा - इसमें कोई सन्देह नहीं है।


 जब हम कुछ अच्छे विचारों को दूसरों के साथ बांटते हैं तब हम भी इससे लाभान्वित होते हैं। जब हम अपने ज्ञान को दूसरों के साथ बांटते हैं तब भगवान की कृपा से हमारा ज्ञान भी बढ़ता है। प्रायः दूसरों को भोजन खिलाने से हम कभी भूखे नहीं रह सकते।।


श्री कृष्ण में पराभक्ति करके जो इस परम गोपनीय संवाद-(गीता-ग्रन्थ)  को उनके भक्तों में कहेगा, वह उन्हें ही प्राप्त होगा - इसमें कोई सन्देह नहीं है।






107. यह गुह्य ज्ञान जो उसे प्रदान किया गया है वह सबके लिए नहीं है। अन्य लोगों में इसे बांटने के लिए यह आवश्यक है कि हमें उन्हें यह ज्ञान देने से पूर्व उनकी पात्रता को परखना चाहिए।

 

यह गुह्य ज्ञान जो उसे प्रदान किया गया है वह सबके लिए नहीं है। अन्य लोगों में इसे बांटने के लिए यह आवश्यक है कि हमें उन्हें यह ज्ञान देने से पूर्व उनकी पात्रता को परखना चाहिए।





106. संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को श्री कृष्ण में त्यागकर तुम केवल श्री कृष्ण सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण चले जाओ। वह तुम्हें संपूर्ण पापों से मुक्त कर देंगे, तुम शोक मत करो ॥


संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को श्री कृष्ण में त्यागकर तुम केवल  श्री कृष्ण सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण चले जाओ। वह तुम्हें संपूर्ण पापों से मुक्त कर देंगे, तुम शोक मत करो ॥




105. सदैव श्री कृष्ण का चिन्तन करो, उनके भक्त बनो, उनकी पूजा करो और उन्हें नमस्कार करो । इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे कृष्ण के पास जाओगे । 







104. श्री कृष्ण कहते हैं: तुम मेरे अत्यन्त प्रिय मित्र हो, अतएव मैं तुम्हें अपना परम आदेश, जो सर्वाधिक गुह्यज्ञान है, बता रहा हूँ |इसे अपने हित के लिए सुनो |


श्री कृष्ण कहते हैं: तुम मेरे अत्यन्त प्रिय मित्र हो, अतएव मैं तुम्हें अपना परम आदेश, जो सर्वाधिक गुह्यज्ञान है, बता रहा हूँ |इसे अपने हित के लिए सुनो |



103. उस (ईश्वर की) शरण में हर प्रकार से आ जाओ। उस ईश्वर की कृपा से तुम्हें सर्वश्रेष्ठ शान्ति वाला स्थान स्वर्ग हमेशा के लिए प्राप्त होगा।


उस (ईश्वर की) शरण में हर प्रकार से आ जाओ। उस ईश्वर की कृपा से तुम्हें सर्वश्रेष्ठ शान्ति वाला स्थान स्वर्ग हमेशा के लिए प्राप्त होगा।





102. परमात्मा सभी जीवों के हृदय में निवास करता है। उनके कर्मों के अनुसार वह भटकती आत्माओं को निर्देशित करता है जो भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र पर सवार होती है।


परमात्मा सभी जीवों के हृदय में निवास करता है। उनके कर्मों के अनुसार वह भटकती आत्माओं को निर्देशित करता है जो भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र पर सवार होती है।




101. श्री कृष्ण कहते हैं: "यदि तुम अहंकार से प्रेरित होकर सोचते हो कि “मैं युद्ध नहीं लडूंगां' तुम्हारा निर्णय निरर्थक हो जाएगा। तुम्हारा स्वाभाविक क्षत्रिय धर्म तुम्हें युद्ध लड़ने के लिए विवश करेगा।"


यदि तुम अहंकार से प्रेरित होकर सोचते हो कि “मैं युद्ध नहीं लडूंगां' तुम्हारा निर्णय निरर्थक हो जाएगा। तुम्हारा स्वाभाविक क्षत्रिय धर्म तुम्हें युद्ध लड़ने के लिए विवश करेगा।



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