बजरंग बाण 16 वीं शताब्दी में संत तुलसीदास द्वारा अवधी बोली में लिखा गया था। तुलसीदास प्रसिद्ध हनुमान चालीसा मंत्र के रचयिता भी हैं। बजरंग बाण का पाठ करने से व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ प्राप्त हो सकते हैं: बजरंग बाण व्यक्ति को उसके जीवन के सभी भय, रोगों और समस्याओं से मुक्ति दिलाता है।
दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
जो कोई भी राम भक्त हनुमान जी के सामने दृढ़ संकल्प लेकर पूरे श्रद्धा और विश्वास और प्रेम से उनसे प्रार्थना करता है हनुमान जी उनके सभी कार्यों को सिद्ध करते हैं।
॥चौपाई॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै।
आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
हे संतों के कल्याण करने वाले हनुमान जी महाराज ! आपकी जय हो।हे प्रभु हमारी प्रार्थना सुन लीजिए। हे वीर हनुमान! अब भक्तों के कार्यों में देरी न करें और जल्दी से आकर अपने भक्त को सुख प्रदान करें।
चौपाई ।।
जैसे कुदि सिन्धु वहि पारा, सुरसा बदन पैठि बिस्तारा। आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुर लोका।
हे हनुमान जी जैसे आपने कूद कर सागर को पार कर लिया था, सुरसा जैसी राक्षसी ने अपने विशालकाय शरीर से आपको लंका जाने से रोकने की कोशिश की थी, लेकिन उसके लाख कोशिश के बाद आपने उसे लात मारकर देवलोक पहुंचा दिया था।
चौपाई ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।
सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा।
अति आतुर यम कातर तोरा॥
जिस प्रकार लंका जाकर आपने विभीषण को सुख दिया, माता सीता को ढूंढकर परम पद की प्राप्ति की। आपने रावण की लंका के बाग उजाड़कर रावण के भेजे हुए सैनिकों के यमदूत बन गए।
अक्षय कुमार को मारी संहारा, लूम लपेटि लंक को जारा। लाह समान लंक जरि गई, जय- जय धुनि सुरपुर मँह भई।।
जितनी तेजी से आपने अक्षय कुमार को मार गिराया, जिस प्रकार आपने अपनी पूंछ से लंका के महल को लाख के महल की तरह जला दिया जिससे आपकी जय जयकार स्वर्ग में होने लगी।
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अंतर्यामी। जय जय लखन प्राण के दाता, आतुर होई दुख करहूं निपाता।
हे स्वामी अब किस कारण से आप विलम्ब कर रहे हैं, हे अंतर्यामी अब कृपा कीजिए। लक्ष्मण जी के प्राण बचाने वाले हे हनुमान जी आपकी जय हो। हे हनुमान जी आप जल्दी से मेरे कष्टों का निवारण कीजिए।
जय गिरिधर जय जय सुख सागर,
सुर - समूह - समरथ भट- नागर।
ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले,
बैरिहिं मारु बज्र की कीले।
हे गिरिधर, सुख के सागर ! आपकी जय हो। सभी देवताओं सहित भगवान विष्णु जितना सामर्थ्य रखने वाले हनुमान जी, आपकी जय हो। हे हठीले हनुमान जी! वज्र की कीलों से शत्रुओं पर प्रहार करो।
( हे हनुमान जी अपने इस दास को शत्रुओं से छुटकारा दिला दो।)
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो।
महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐ कार हुँकार महाप्रभु धावो।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।
हे हनुमान जी! अपनी वज्र की गदा से शत्रुओं का विनाश करो। अपने इस दास को विपत्तियों से उबार लो। ओंकार की हुंकार भर कर अब कष्टों पर धाबा बोल दो । मेरी रक्षा हेतु अपनी
गदा से प्रहार करने में अब बिल्कुल भी विलम्ब न करो।
ओं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीशा।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर- शीशा॥
सत्य होहु हरि सत्य पायके।
रामदूत धरु मारु जाय के॥
हे ह्रीं रूपी शक्तिशाली कपीश हनुमान जी!आप शक्ति को अत्यंत
प्रिय हो और हमेशा उनके साथ रहते हो। हे हुं रूपी ओंकार प्रभु!
आप मेरे दुश्मनों के शीश और हृदय को विदीर्ण कर दो। हे दीनानाथ! आपको श्री हरि की शपथ है। हे रामदूत! मेरे शत्रुओं का और मेरी विपत्तियों का विलय कर दो।(भगवान विष्णु खुद कहते हैं कि उनके शत्रुओं का विनाश रामदूत हनुमान तुरंत आकर करते हैं।)
जय जय जय हनुमन्त अगाधा,
दु:ख पावत जन केहि अपराधा।
पूजा जप तप नेम अचारा,
नहीं जानत हौं दास तुम्हारा।
हे अगाध शक्तियों के स्वामी! मैं आपकी अपने दिल की गहराईयों से जय जय कार करता हूँ। आपके होते हुए लोग किन अपराधों के कारण दुखी हैं। हे हनुमान जी ! आपका ये दास पूजा, जप, तप, नियम, आचार कुछ भी नहीं जानता है। मुझ अज्ञानी का उद्धार करो।
वन उपवन मग, गिरि गृह माहीं,
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।
पाँय परौं कर जोरी मनावौं,
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।
जंगलों में, उपवन में, रास्ते में, पहाड़ों में या फिर घरों में कहीं भी आपकी कृपा से हमें डर नहीं लगता है। हे प्रभु!
मैं आपके पांव पकड़ कर, दंडवत होकर या फिर हाथ जोड़कर आपको मनाऊं। इस विपत्ति मैं आपको किस तरह मनाऊं ( किस तरह से रक्षा की गुहार लगाऊं)।
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।
बदन कराल काल - कुल घालक, राम सहाय सदा प्रति पालक।
हे अंजनी पुत्र! हे अतुलित बल के स्वामी! हे भोले शंकर के
अंश! हे वीर हनुमान ! आपकी जय हो। आपका शरीर अति विशाल है और आप काल का भी संहार कर सकते हैं । आप
श्री राम जी के सहायक हैं (सदा उनके वचनों का पालन
किया हैं) और आप असहाय की रक्षा करते हैं।
भूत , प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारीमर।
इन्हें 'मारू' तोहि शपथ राम की, राखु नाथ मरजाद नाम की।
हे रामभक्त हनुमान ! आपके नाम का जाप करने से भूत-प्रेत, राक्षस, रात में घूमने वाले निशाचर, अग्नि पिशाच, मृत्यु और महामारी, सभी एक ही बार में गायब हो जाते हैं । हे प्रभु !आपको अपने प्रभु श्री राम की शपथ है। इन्हें मारकर प्रभु श्री राम के नाम की मर्यादा रखो।
जनक सुता हरि दास कहावो, ताकी शपथ, विलम्ब न लावो।
जय-जय -जय धुनि होत अकाशा, सुमिरत होत दुसह दुख नाशा।
हे प्रभु ! आप सीता माता और श्री राम जी दोनों के ही दास कहलाते हैं। आपको उनकी कसम है । अब मेरे कार्य को करने में तनिक भी विलम्ब न करिए। हे प्रभु! आपकी जयकार की ध्वनि आकाश में भी सुनाई देती है। जो भी आपका सुमिरन करता है उसके सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।
चरण शरण , कर जोरी मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।उठु, उठु चलु तोहि राम - दोहाई, पांय परौं कर जोरी मनाई।
हे हनुमान जी ! मैं आपके पैरों में पड़कर और हाथ जोड़कर आपसे विनती करता हूँ । इस विपत्ति मैं आपको किस तरह मनाऊं ( किस तरह से रक्षा की गुहार लगाऊं)? हे राम भक्त हनुमान ! मेरी रक्षा हेतु आप तुरंत उठकर मेरे साथ चलो । हे हनुमान जी ! आपको प्रभु श्री राम जी की दुहाई है। प्रभु ! मैं बार-बार आपके पांव पकड़कर और आपके आगे हाथ जोड़कर आपको मना रहा हूँ।
हे हनुमान जी ! तीव्र वेग (वायु वेग ) से गतिमान् रहने वाले प्रभु! मेरी विपत्तियों का भी तीव्रता से नाश करो । हे कपीश ! यदि आप हुँकार भी कर देते हैं तो राक्षसों की सेना ऐसे भयभीत हो उठती है जैसे सूर्योदय के समय अंधकार सहम जाता है।
अपने जन को तुरत उबारो, सूमिरत होय आनंद हमारो।
यह बजरंग बाण जेहि मारै, ताहि कहो फिर कौन उबारे।
हे अमितविक्रम ! अपने दास को विपत्तियों से शीघ्र ही उबार लो । आपका स्मरण करने से ही हमे आनंद की प्राप्ति होती है। अगर किसी को भी यह बजरंग बाण लगता है तो अखिल ब्रह्मांड में उसकी रक्षा फिर कौन कर सकता है?
पाठ करै बजरंग बाण की, हनुमत रक्षा करै प्राण की।
यह बजरंग बाण जो जापै, ताते भूत - प्रेत सब कांपे।
धूप देय अरु जपै हमेशा, ताके तन नहिं रहै कलेशा।।
जो कोई भी इस बजरंग बाण का पाठ करता है उसके प्राणों की रक्षा स्वयं हनुमान जी करते हैं। जो कोई भी इस बजरंग बाण का जप करते हैं उनसे भूत प्रेत सब डरकर कांपने लगते हैं।
जो भी मनुष्य धूप दीप देकर श्रद्धा से इस बजरंग बाण का पाठ करता है उसे किसी भी प्रकार का मानसिक औऱ शारीरिक कष्ट नहीं होता है।
प्रेम प्रतितहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
प्रेम पूर्वक एवं विश्वासपूर्वक जो कपिवर श्री हनुमान जी का स्मरण करता हैं एवं सदा उनका ध्यान अपने हृदय में करता है उसके सभी प्रकार के कार्य हनुमान जी की कृपा से सिद्ध होते हैं ।।
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1. दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
2. ॥चौपाई॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
3. चौपाई ।।
जैसे कुदि सिन्धु वहि पारा, सुरसा बदन पैठि बिस्तारा। आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुर लोका।
4. जाय विभीषण को सुख दीन्हा।
सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा।
अति आतुर यम कातर तोरा॥
5. अक्षय कुमार को मारी संहारा, लूम लपेटि लंक को जारा। लाह समान लंक जरि गई, जय- जय धुनि सुरपुर मँह भई।।
6.
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अंतर्यामी। जय जय लखन प्राण के दाता, आतुर होई दुख करहूं निपाता।
7. जय गिरिधर जय जय सुख सागर,
सुर - समूह - समरथ भट- नागर।
ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले,
बैरिहिं मारु बज्र की कीले।
8.
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो।
महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐ कार हुँकार महाप्रभु धावो।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।
9.
ओं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीशा।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर- शीशा॥
सत्य होहु हरि सत्य पायके।
रामदूत धरु मारु जाय के॥
10. जय जय जय हनुमन्त अगाधा,
दु:ख पावत जन केहि अपराधा।
पूजा जप तप नेम अचारा,
नहीं जानत हौं दास तुम्हारा।
11. वन उपवन मग, गिरि गृह माहीं,
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।
पाँय परौं कर जोरी मनावौं,
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।
12. जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।
बदन कराल काल - कुल घालक, राम सहाय सदा प्रति पालक।
13. भूत , प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारीमर।
इन्हें 'मारू' तोहि शपथ राम की, राखु नाथ मरजाद नाम की।
14. जनक सुता हरि दास कहावो, ताकी शपथ, विलम्ब न लावो।
जय-जय -जय धुनि होत अकाशा, सुमिरत होत दुसह दुख नाशा।
15. चरण शरण , कर जोरी मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।उठु, उठु चलु तोहि राम - दोहाई, पांय परौं कर जोरी मनाई।
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ACTIVITY 2: Read the stanzas and answer the questions that follow. A. Oh! Defenders of borders You are great sons of my land When we are all asleep You still hold on to your deed Windy season or snowy days Or scorching sun's sweltering rays You are there guarding all the time awake Treading the lonely expanses as yogis a. Name the poet of the poem ‘My Dear Soldiers’. Ans. Dr. A.P.J. Abdul Kalam b. Who are being referred to as ‘Defenders of borders’? Ans. The soldiers are being referred to as ‘Defenders of borders’. c. How do these great sons serve their motherland? Ans. They serve their motherland day and night in all seasons. d. What kind of weather conditions do the soldiers have to face? Ans. The soldiers have to face all kinds of extreme weather - scorching summers, snowy winters, windy and rainy season. B. Climbing the heights or striding the valleys Defending the deserts or guarding the marshes Surveillance in seas and by securing the air Prime...
Structure of Question Paper : VI to X http://youtube.com/post/UgkxB-JT78STsVMT0owegAn8YbimSYw27rYI?si=AwlnkqZEAXlX30In J oin us for more material @ https://t.me/MyEnglishWorld2015 ☆☆☆☆ Join our WhatsApp Community group to get the next parts : CLICK HERE
Bimonthly Syllabus , October-November 2024 Class VI to X Class 6th: Class 7 Class VIII Class IX Class X 📌📌 Click here to join us https://chat.whatsapp.com/LAOoMFT6ysG3mlMdIVSnwJ
OBJECTIVE TYPE QUESTIONS Content : 🥀🛑🥀 MCB⬇️ Chapter # 1 : The Grooming of a Boy Chapter # 2: Plants also Breathe and Feel Chapter 3 : Budgeting Your Time Chapter 4 : Journey By Night Chapter 5 : The Discovery of the Moon Chapter 6 : Three Great Indians Chapter 7 : Death of Abhimanyu Poems: ● Open Thy Eyes and See Thy God ● No Men Are Foreign ● The Nightingale and the Glow-worm 🥀♦️🥀 Supplementary Reader⬇️ Chapter # 1: The Magic Violin Chapter # 2: Wishes Come True Chapter # 3 : In the Flood (Pending) Chapter # 4 : A Letter to God Chapter # 5 : The Last Leaf Chapter # 6 : The Bewitched Jacket Chapter # 7 : The King who Limped 🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷🏷 Chapter # 1 : Grooming of a Boy 1. Lincoln's son will learn that a) all men are not just. b) all men are not true. c) Both (a) and (b) d) Neither (a) nor (b) Ans. Both (a) and (b) 2. What should Lincoln’s son be steered away from? a. e...
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