Sri Hanuman Chalisa (Arth & Mahima Sahit)
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Sri Hanuman Chalisa
हनुमान चालीसा को कवि तुलसीदास जी ने लिखा था इसका शास्त्रों में बहुत ज्यादा महत्व है। कहते हैं इसका जाप करने से शक्ति, साहस, सुरक्षा और बुद्धि मिलती है।
हनुमान चालीसा की चमत्कारी चौपाइयां
1. दोहा # 1
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई के पाठ से गुरुकृपा होती है।
2. दोहा # 2
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
हे पवनपुत्र। मैं खुद को बुद्धिहीन मानता हूँ और आपका ध्यान, स्मरण करता हूँ । आप मुझे बल-बुद्धि और विद्या प्रदान करें। मेरे सभी कष्टों और दोषों को दूर करने की कृपा कीजिए।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से बल बुद्धि और निरोगी काया।
🎶🎧🎶🎧🎶 नीचे दिए गए video पर Click करके आप बार-बार यह दोनों दोहे सुन सकते हैं।
3. चौपाई # 1
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ।
श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोक (स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक) आपकी कीर्ति से प्रकाशित होते हैं।
( हनुमान जी साक्षात् भगवान शिव के अवतार हैं।)
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से हनुमत कृपा मिलती है।
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4. चौपाई # 2
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
हे रामदूत! अंजनी-पुत्र, पवनसुत ये सब आपके ही नाम है और इस ब्रम्हांड में आपके समान कोई भी बलवान नहीं है।आप अतुलित बल के भंडार घर हैं ।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से शारीरिक और आत्मिक बल की प्राप्ति होती है।
🎶🎧🎶🎧🎶 नीचे दिए गए video पर Click करके आप बार-बार यह चौपाई सुन सकते हैं।
5. चौपाई # 3
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
हे महावीर बजरंगी! आप दुनिया में सबसे बड़े पराक्रमी हैं, आप बुद्धिहीन व्यक्ति को बुद्धि प्रदान करते हैं और अच्छी बुद्धि वालों का साथ देते हैं।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से बुरी संगत से छुटकारा और अच्छे लोगो का साथ मिलता है।
🎶🎧🎶🎧🎶 नीचे दिए गए video पर Click करके आप बार-बार यह चौपाई सुन सकते हैं।
6. चौपाई # 4
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हे बजरंगबली! आपका रंग कंचन अर्थात सोने जैसा चमकदार है और आप सुंदर वस्त्रों से सुशोभित हैं। आपके कानों में पड़े कुंडल और आपके घुंघराले बाल आपकी शोभा को बढ़ाते हैं।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से आर्थिक समृद्धि अच्छा खानपान, संस्कार और पहनावा प्राप्त होता है।
7. चौपाई # 5
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
हे बजरंगबली! आपके एक हाथ में बज्र और दूसरे हाथ में ध्वजा रहती है, एवं आपके कंधे पर मूंज का जनेऊ आपकी शोभा बढ़ाता है।
बज्र = बज्र के समान कठोर गदा
ध्वजा = धर्म का प्रतीक है
मुंज = मूंज एक प्रकार की घास होती है
हनुमान चालीसा की यह चौपाई विजय दिलाती है।
8. चौपाई # 6
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
हे केसरीनंदन हनुमान! आप भगवान शंकर के अवतार हैं, आपके तेज और प्रताप की (यश, पराक्रम और महिमा की ) पूरे संसार में बंदना की जाती है।
सुवन का अर्थ होता है, किसी के सभी गुणों के साथ उसका अंश होना।
🪔🪔 हनुमान चालीसा की इस चौपाई से प्रताप बढ़ता है, विजय मिलती है।
9. चौपाई # 7
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
हे हनुमान! आप जितना विद्यावान, समझदार (गुणी) ,अत्यंत बुद्धिमान और चतुर इस संसार में कोई नहीं, और आप अपनी इसी बुद्धि और विद्या का प्रयोग श्री राम के कार्यों को करने के लिए आतुर रहते हैं और उसे बड़े ही अच्छे ढंग से करते हैं।
🪔🪔 कार्य= संसार कल्याण के कार्य
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का जाप करने से ज्ञान और बुद्धि मिलती है।
10. चौपाई # 8
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
हे पवनसुत हनुमान! आप श्री राम जी का चरित्र (पवित्र मंगलमय कथा / रामचरितमानस) सुनने में /गुणगान करने में आनन्द रस लेते हैं । भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण आपके हृदय में विराजमान है। (आप भी श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण के हृदय में बसते हैं। )
हनुमान चालीसा की यह चौपाई रामकृपा और यश दिलाती है।
11. चौपाई # 9
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
हे पवनपुत्र हनुमान! इस दुनिया में आपका कोई सानी नहीं है, एक क्षण में अपने छोटा रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए थे और दूसरे क्षण आपने विकट विकराल रूप धारण कर लंका को जला दिया था।
(श्री हनुमान जी जब लंका पहुंचे थे तो देवी सीता के आगे वो बहुत छोटा रूप धारण करके गए थे। वहीं जब उन्होंने लंका दहन किया तो भीम जैसा विशाल रूप धारण कर लिया। )
हनुमान चालीसा की यह चौपाई महान संकट में चमत्कारिक कृपा दिलाती है।
12. चौपाई # 10
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
हे पवनपुत्र हनुमान! आपने अत्यंत विशाल रूप धारण कर असुरों का संहार किया और अपने प्रभु श्री राम के काम को आसान बना दिया।
श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई से भयानक संकट या शत्रुपक्ष से घिरने पर मदद मिलती है।
13. चौपाई # 11
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण को जीवनदान दिया था, उसे देख कर श्री रघुवीर का हृदय आपके प्रति हर्ष से भर गया । श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से शारीरिक व्याधि निवारण मे मदद मिलती है।
लंका में युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण जी घायल हो गए थे तो हनुमानजी ने संजीवनी बुटी लाकर उनके प्राणों की रक्षा की थी।
(सुषेण लंकापति रावण के राजवैद्य थे. जिन्हें हनुमान लंका से भवन सहित उठा लाए थे. सुषेण वैद्य ने बताया कि हिमालय के मंदार पर्वत पर संजीवनी बूटी है. अगर ये संजीवनी बूटी मिल जाए तो लक्मण जी को होश में लाया जा सकता है।)
14. चौपाई # 12
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
हे हनुमंत! श्री राम आपको इतना पसंद करते हैं कि वे आपकी बढ़ाई करते हुए नहीं थकते हैं, उनको आप अपने भाई भरत की तरह अत्यंत प्रिय हो।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से वरिष्ठ लोगों की कृपा प्राप्त होती है।
15. चौपाई # 13
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
हे पवनपुत्र हनुमान! हजारों मुख (श्री शेष जी ) आपका यशोगान करें - यह कह कर लक्ष्मी पति विष्णु स्वरूप श्री राम ने आपको गले से लगा लिया।
श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया कि तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से यश और मान सम्मान मिलता है।
16. चौपाई # 14
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
हे हनुमान जी !सनकादिक ऋषि, ब्रह्मा आदि देवता, नारद जी,सरस्वती जी और शेषनाग भी आपके यश का पूरी तरह वर्णन नहीं कर सकते । वे सब आपका गुण गान करते हैं ।
सनकादि ऋषि (सनकादि = सनक + आदि) से तात्पर्य ब्रह्मा के चार पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन व सनत्कुमार से है। पुराणों में उनकी विशेष महत्ता वर्णित है।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से सभी ओर प्रसिद्धि और कीर्ति बढ़ती है।
17. चौपाई # 15
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि, विद्वान, पंडित, या कोई भी आपके यश का पूरी तरह वर्णन नहीं कर सकते।
यह चौपाई श्री रामचंद्र जी द्वारा हनुमान जी की प्रशंसा में कही गई है। उन्होंने कहा है कि यम अर्थात यमराज, जो हर व्यक्ति का लेखा जोखा रखते हैं, कुबेर अर्थात विश्व के सभी ऐश्वर्य के स्वामी, दसों दिगपाल अर्थात दसों दिशाओं के रक्षक देवता गण विश्व के सभी कवि सभी विद्वान सभी पंडित मिलकर भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते हैं।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से यश कीर्ति की वृद्धि होती है, मान सम्मान मिलता है।
18. चौपाई # 16
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।
भगवान श्रीराम-सुग्रीव मैत्री के स्थापन में हनुमानजी की मुख्य भुमिका थी । यदि सुग्रीव को हनुमान जैसे कुशल, दूरदर्शी, नीतिज्ञ, मेधावी, शुरवीर और राजनीतिज्ञ मंत्री का सानिध्य प्राप्त नहीं होता तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि कभी स्वप्न में भी बलशाली बालि के रहते सुग्रीव को किष्किन्धाका राज्य, अपहृत पत्नी और राज्य वैभव प्राप्त होता । यहाँ वे एक श्रेष्ठ राजदूत के रुपमें श्रीराम-सुग्रीव-संधि स्थापित करवाकर उभय पक्ष के हिताहित का बराबर ध्यान रखते हुए उत्तम मध्यस्थ की भुमिका का समुचित निर्वहन करते हैं । यह पवनपुत्र हनुमानजी की विशेषता है कि सुग्राीव के प्रति श्रीराम के हृदयमें अच्छे मित्र के संवरण का आकर्षण उत्पन्न हो सका । उन्ही के सत्प्रयास का परिणाम था कि श्रीराम सम्पन्न वानरराज बालिकी उपेक्षा कर के दर-दर भटकते, प्राण बचाते, ऋष्यमूक पर्वत पर छिपे सुग्रीव को अपनाते हैं ।
हनुमान चालीसा की यह चौपाई राजकीय मान सम्मान दिलाती है।
19. चौपाई # 17
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
आपके उपदेश का विभिषण जी ने पूर्णतः पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
श्री हनुमान चालीसा की यह चौपाई हनुमतकृपा पर विश्वास और सभी ओर सफलता का सूचक है।
20. चौपाई # 18
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
हे महावीर हनुमान! जो सूर्य इस पृथ्वी से लाखों जुग, योजन दूर है जहां तक पहुंचना ही असंभव सा कार्य है, उस हजारों योजन दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया ।
कितनी है सूरज और धरती के बीच की दूरी
हनुमान चालीसा के इस दोहे में ही सूरज और धरती के बीच की दूरी का गणित छिपा है. इस दोहे का अर्थ यह है कि हनुमान जी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु (सूर्य) को मीठा फल (आम) समझकर खा लिया था. बता दें कि योजन पहले दूरी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ईकाई थी. इसमें एक युग का मतलब 12000 वर्ष, एक सहस्त्र का मतलब 1000 और एक योजन यानी 8 मील होता है. अब देखा जाए तो युग x सहस्त्र x योजन = 12000x1000x8 मील. इस प्रकार यह दूरी 96000000 मील है. किलोमीटर में अगर इस दूरी को देखें तो एक मील में 1.6 किमी होते हैं तो.इस हिसाब से 96000000x1.6= 153600000 किमी. इस गणित के आधार गोस्वामी तुलसीदास ने प्राचीन समय में ही बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी करीब 15 करोड़ किलोमीटर है.
शास्त्रों के मुताबिक हनुमानजी भगवान शिव के ही अवतार हैं और उन्हें जन्म से ही कई दिव्य शक्तियां प्राप्त थीं. हनुमान चालीसा के अनुसार बचपन में बाल हनुमान को खेलते हुए सूर्य ऐसे दिखाई दिया जैसे वह कोई मीठा फल हो. वे उसे खाने की चाह में तुरंत ही सूर्य तक उड़कर पहुंच गए.
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से सूर्यकृपा, विद्या, ज्ञान और प्रतिष्ठा मिलती है।
21. चौपाई # 19
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
हे हनुमंत! आपने श्रीरामचंद्रजी की दी हुई अँगुठी को अपने मुंह में रखकर समुद्र को पार किया (और उस अँगुठी को सीता जी तक पहुंचाया था), परन्तु (आपकी अपार महिमा को देख कर) इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।
हनुमान चालीसा की यह चौपाई जातक को महान से महान संकट से मुक्ति दिलाती है।
22. चौपाई # 20
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
हे हनुमंत! संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हैं, वे सभी आपकी कृपा से सहज और सुलभ हो जाते हैं ।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से जीवन की सभी समस्याओं का अंत होता है।
23. चौपाई # 21
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
श्री रामचंद्रजी के द्वार के आप रखवाले ( द्वारपाल) हैं , जिसमें आपकी आज्ञा के बिना किसी को प्रवेश नहीं मिल सकता । (अर्थात श्रीराम की कृपा और भक्ति को पाने के लिए आपको प्रसन्न करना आवश्यक है)।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से प्रभु कृपा प्राप्त होती है।
24. चौपाई # 22
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।
हे हनुमंत ! जो भी आपकी शरण में आते हैं उन सभी को आनन्द एवं सुख प्राप्त होता है । आप जिनके रक्षक है, उन्हें किसी का डर नहीं रहता है।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से जातक निर्भयता तथा सभी सुख प्राप्त करता है। अगर आप ईश्वर में श्रद्धा रखते हैं तो किसी भी स्थिति में आपको डरने की आवश्यकता नहीं है।
25. चौपाई # 23
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता । आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते हैं ।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से जातक को अनंत कीर्ति प्राप्त होती है।
26. चौपाई # 24
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
हे पवनपुत्र! जब कोई व्यक्ति आपका नाम सुमिरन करता है, तब भूत पिशाच एवं दुष्ट आत्मा उसके आसपास भी नहीं भटक सकती हैं।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से बुरी आत्मा, भूतप्रेत दूर भागते हैं।
27. चौपाई # 25
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
हे हनुमंत! जो मनुष्य आपके नाम का निरंतर जप करता है, उसके सभी रोग, दर्द एवं सभी प्रकार की परेशानियों का निवारण हो जाता है।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से सभी कष्टों का नाश होता है।
28. चौपाई # 26
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
हे हनुमान जी ! विचार करने में, कर्म करने में और बोलनें में जिनका ध्यान आप में लगा रहता है, उनको सब दु:खों से आप दूर कर देते हैं । हनुमान जी आप संकटमोचन हैं, जो मन, क्रम और वचन से एकाग्र होकर उनका ध्यान धरता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं ।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का स्मरण जातक को सभी संकटों से मुक्त करता है।
29. चौपाई # 27
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
हे हनुमान जी ! तपस्वी राजा श्रीरामचंद्रजी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया ।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का पाठ राजकीय कार्यों मे सफलता मिलती है।
30. चौपाई # 28
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
हे हनुमान जी ! जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।
हनुमान चालीसा की यह चौपाई सभी मनोरथ सिद्ध करने वाली है।
31. चौपाई # 29
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
हे हनुमान जी ! आपका यश चारों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग) में फैला हुआ है, सम्पूर्ण संसार में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान हैं ।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का पाठ जातक की हर ओर कीर्ति मे वृद्धि करती है।
32. चौपाई # 30
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
हे श्री राम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से दुष्टों का नाश होता है।
33. चौपाई # 31
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
हे हनुमान जी ! आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है। (माता सीता ने आपको आठ सिद्धियोंऔर नौ निधियों (दिव्य भाग्य) के दाता बनने के लिए सहायता प्रदान की।)
1. अणिमा – जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर जाता है।
2. महिमा – जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।
3. गरिमा – जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।
4. लघिमा – जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।
5. प्राप्ति – जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।
6. प्राकाम्य – जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है।
7. ईशित्व – जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।
8. वशित्व – जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।
अष्ट सिद्धियां वे सिद्धियाँ हैं, जिन्हें प्राप्त कर व्यक्ति किसी भी रूप और देह में वास करने में सक्षम हो सकता है। वह सूक्ष्मता की सीमा पार कर सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा जितना चाहे विशालकाय हो सकता है।
१. अणिमा : अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली सिद्धि अणिमा हैं, जिसका अर्थ! अपने देह को एक अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति से हैं।जिस प्रकार हम अपने नग्न आंखों से एक अणु को नहीं देख सकते, उसी तरह अणिमा सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात दूसरा कोई व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करने वाले को नहीं देख सकता हैं। साधक जब चाहे एक अणु के बराबर का सूक्ष्म देह धारण करने में सक्षम होता हैं।
२. महिमा : अणिमा के ठीक विपरीत प्रकार की सिद्धि हैं महिमा, साधक जब चाहे अपने शरीर को असीमित विशालता करने में सक्षम होता हैं, वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता हैं।
३. गरिमा : इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकता हैं। साधक का आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं।
४. लघिमा : साधक का शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं। उसके शरीर का भार ना के बराबर हो जाता हैं।
५. प्राप्ति : साधक बिना किसी रोक-टोक के किसी भी स्थान पर, कहीं भी जा सकता हैं। अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सनमुख अदृश्य होकर, साधक जहाँ जाना चाहें वही जा सकता हैं तथा उसे कोई देख नहीं सकता हैं।
६. प्रकाम्य : साधक किसी के मन की बात को बहुत सरलता से समझ सकता हैं, फिर सामने वाला व्यक्ति अपने मन की बात की अभिव्यक्ति करें या नहीं।
७. ईशत्व : यह भगवान की उपाधि हैं, यह सिद्धि प्राप्त करने से पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं, वह दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता हैं।
८. वशित्व : वशित्व प्राप्त करने के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति को अपना दास बनाकर रख सकता हैं। वह जिसे चाहें अपने वश में कर सकता हैं या किसी की भी पराजय का कारण बन सकता हैं।
हनुमान चालीसा में लिखा अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता असवर दिनि जानकी माता। यहां नवनिधियों की बात कही गई है और बताया गया है कि हनुमानजी के पास अष्टसिद्धियां और नवनिधियां हैं जो प्रसन्न होने पर हनुमानजी अपने भक्तों को प्रदान करते हैं। नवनिधियों के बारे में शास्त्र पुराणों में जैसा बताया गया है उसके अनुसार कोई एक भी किसी मनुष्य को मिल जाए तो जीवन भर उसे किसी चीज की कमी नहीं रहती। आइए जानें वो नवनिधियां यानी 9 निधियां कौन-कौन सी हैं।
*ये हैं नवनिधियां*
1. पद्म निधि,
2. महापद्म निधि,
3. नील निधि,
4. मुकुंद निधि,
5. नंद निधि,
6. मकर निधि,
7. कच्छप निधि,
8. शंख निधि और
9. खर्व या मिश्र निधि।
माना जाता है कि नव निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष 8 निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं, लेकिन इन्हें प्राप्त करना इतना भी सरल नहीं है।
पद्म निधि
पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक गुण युक्त होता है, तो उसकी कमाई गई संपदा भी सात्विक होती है। सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा से कई पीढ़ियों को धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। ऐसे व्यक्ति सोने-चांदी रत्नों से संपन्न होते हैं और उदारता से दान भी करते हैं।
महापद्म निधि
महापद्म निधि भी पद्म निधि की तरह सात्विक है। हालांकि इसका प्रभाव 7 पीढ़ियों के बाद नहीं रहता। इस निधि से संपन्न व्यक्ति भी दानी होता है और 7 पीढियों तक सुख ऐश्वर्य भोगता है।
नील निधि
नील निधि में सत्व और रज गुण दोनों ही मिश्रित होते हैं। ऐसी निधि व्यापार द्वारा ही प्राप्त होती है इसलिए इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों ही गुणों की प्रधानता रहती है। इस निधि का प्रभाव तीन पीढ़ियों तक ही रहता है।
मुकुंद निधि
मुकुंद निधि में रजोगुण की प्रधानता रहती है इसलिए इसे राजसी स्वभाव वाली निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति या साधक का मन भोगादि में लगा रहता है। यह निधि एक पीढ़ी बाद खत्म हो जाती है।
नंद निधि
नंद निधि में रज और तम गुणों का मिश्रण होता है। माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है। ऐसी निधि से संपन्न व्यक्ति अपनी तारीफ से खुश होता है।
मकर निधि
मकर निधि को तामसी निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न साधक अस्त्र और शस्त्र को संग्रह करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति का राजा और शासन में दखल होता है। वह शत्रुओं पर भारी पड़ता है और युद्ध के लिए तैयार रहता है। इनकी मृत्यु भी अस्त्र-शस्त्र या दुर्घटना में होती है।
कच्छप निधि
कच्छप निधि का साधक अपनी संपत्ति को छुपाकर रखता है। न तो स्वयं उसका उपयोग करता है, न करने देता है। वह सांप की तरह उसकी रक्षा करता है। ऐसे व्यक्ति धन होते हुए भी उसका उपभोग नहीं कर पाता है।
शंख निधि
शंख निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं की ही चिंता और स्वयं के ही भोग की इच्छा करता है। वह कमाता तो बहुत है, लेकिन उसके परिवार वाले गरीबी में ही जीते हैं। ऐसा व्यक्ति धन का उपयोग स्वयं के सुख-भोग के लिए करता है, जिससे उसका परिवार गरीबी में जीवन गुजारता है।
खर्व निधि
खर्व निधि को मिश्रत निधि कहते हैं। नाम के अनुरुप ही इस निधि से संपन्न व्यक्ति अन्य 8 निधियों का सम्मिश्रण होती है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति को मिश्रित स्वभाव का कहा गया है। उसके कार्यों और स्वभाव के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। माना जाता है कि इस निधि को प्राप्त व्यक्ति विकलांग व घमंडी होता हैं, यह मौके मिलने पर दूसरों का धन भी सुख भी छीन सकता है।
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हनुमान चालीसा की यह चौपाई माता सीता के आशीर्वाद से मनोरथ पूर्ण करती है।
34. चौपाई # 32
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
हे हनुमान जी ! आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई के पाठ से मूल रहस्यों , दीर्घायु, बुद्धि व बल की प्राप्ति होती है।
35. चौपाई # 33
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
हे हनुमान जी !आपके भजन करने से श्रीराम जी प्राप्त होते हैं और जन्म जन्मांतर के दु:ख भूल /दूर हो जाते हैं ।
आपके प्रति समर्पण में गाए गए भजनों के माध्यम से,भक्त श्री राम की खोज कर सकते हैं और जन्मों -जन्मों के कष्टों से मुक्त हो सकते हैं।
हनुमान चालीसा की यह चौपाई हनुमत कृपा से सभी दुखों का नाश करती है।
36. चौपाई # 34
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
हे हनुमान जी !अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम को जाते हैं और फिर भी मृत्यलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्रीराम भक्त कहलायेंगे ।
हनुमान चालीसा की यह चौपाई आपका बुढ़ापा और परलोक दोनो सुधारती है।
37. चौपाई # 35
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
हे हनुमानजी ! आपकी सेवा करने सें सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर देवता की पूजा करने की आवश्यकता नहीं रहती ।
अन्य किसी देव की आराधना करने की आवश्यकता नही होती।
38. चौपाई # 36
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
हे वीर हनुमानजी ! जो आपका स्मरण करता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सब पीड़ा मिट जाती हैं ।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का पाठ सभी प्रकार के कष्ट हरने मे समर्थ है।
39. चौपाई # 37
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
हे स्वामी हनुमानजी ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो । आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए ।
गोसाई संयुक्त शब्द, दो शब्दों के योग से बना है:
गो + साई
गो = इंद्रियां
साईं = स्वामी
इसप्रकार शब्द गोसाई का अर्थ हुआ:
(अपनी) इन्द्रियों का स्वामी
अर्थात्
जिसका अपनी इन्द्रियों पर पूरा नियंत्रण हो।
हनुमान जी गुरु स्वरूप में आपकी मदद करते हैं।
40. चौपाई # 38
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
जातक हर बंधन से छुटकारा पाता है।
41. चौपाई # 39
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
जो प्रतिदिन हनुमान चालीसा को पढ़ेगा, वो सिद्धि को प्राप्त करेगा (निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी)। इस के साक्षी भगवान् शंकर हैं।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई से शिव पार्वती की कृपा होती है।
42. चौपाई # 40
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम के दास हैं। इसलिए आप उनके हृदय में निवास कीजिए।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का पाठ निरंतर प्रभु कृपा दिलाता है।
43. दोहा # 3
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलों के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
हनुमान चालीसा की यह चौपाई जीवन मे मंगलदायक है और संकटों को हरती है।
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