Chapter # 2 | Daily Verse/ Shloka | Divya Gyan|| गीता का उपदेश क्या है?
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दिव्य ज्ञान (श्रीमद्भगवद्गीता के पावन पन्नों से)
भगवद्गीता का प्रकटीकरण राजा धृतराष्ट्र और उसके मंत्री संजय के बीच हुए वार्तालाप से आरम्भ होता है। चूंकि धृतराष्ट्र नेत्रहीन था इसलिए वह व्यक्तिगत रूप से युद्ध में उपस्थित नहीं हो सका। अत: संजय उसे युद्धभूमि पर घट रही घटनाओं का पूर्ण सजीव विवरण सुना रहा था। संजय महाभारत के प्रख्यात रचयिता वेदव्यास का शिष्य था। ऋषि वेदव्यास ऐसी चमत्कारिक शक्ति से संपन्न थे जिससे वह दूर-दूर तक घट रही घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने में समर्थ थे। अपने गुरु की अनुकंपा से संजय ने भी दूरदृष्टि की दिव्य चमत्कारिक शक्ति प्राप्त की थी। इस प्रकार से वह युद्ध भूमि में घटित सभी घटनाओं को दूर से देख सका।
Chapter # 2: सांख्य योग
(72 श्लोक)
सांख्य योग के जरिये भगवान श्रीकृष्ण ने पुरुष की प्रकृति और उसके अंदर मौजूद तत्वों के बारे में समझाया। उन्होनें अर्जुन को बताया कि मनुष्य को जब भी लगे कि उस पर दुख या विषाद हावी हो रहा है उसे सांख्य योग यानी पुरुष प्रकृति का विश्लेषण करना चाहिए। मनुष्य पांच सांख्य से बना है - आग, पानी, मिट्टी, हवा और आकाश।
Daily Verse # 48
Chapter # 2, Verse 1
17 January 2024
अब श्री कृष्ण उसके मन में चल रहे युद्ध को लेकर उसकी व्यथा को दूर करेंगे।
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि अति संवेदनशीलता और व्याकुलता निराशा को जन्म देती हैं।
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Daily Verse # 49
Chapter # 2, Verse 2
18 January 2024
श्रीकृष्ण अर्जुन की वर्तमान मानसिक स्थिति को इन आदर्शों के प्रतिकूल पाते हैं और इसलिए उसकी व्याकुलता को ध्यान में रखते हुए वह उसे फटकारते हुए समझाते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में इस आदर्शवादी अवस्था में कैसे रहा जा सकता है। भगवद्गीता या 'भगवान की दिव्य वाणी' वास्तव में यहीं से आरम्भ होती है क्योंकि श्रीकृष्ण, जो अभी तक शांत थे, अब इस श्लोक से बोलना आरम्भ करते हैं। परमात्मा पहले अर्जुन के भीतर ज्ञान प्राप्त करने की क्षुधा उत्पन्न करते हैं।
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि सब कुछ जान कर भी भ्रम की स्थिति में रहना अपमानजनक और सर्वथा अनुचित है।
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Daily Verse # 50
Chapter # 2, Verse 3
19 January 2024
श्रीकृष्ण एक योग्य गुरु हैं और इसलिए अर्जुन को फटकारते हुए वे अब उसे परिस्थितियों का सामना करने के लिए प्रोत्साहित कर उसके आत्मबल को बढ़ाते हैं।
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि शिष्य का आत्मबल बढ़ाने के लिए गुरु उसे डांट भी लगा सकता है।
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Daily Verse # 51
Chapter # 2, Verse 4
20 January 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है हमें नैतिक दायित्व का निर्वहन करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।
गुरु द्रोण और भीष्मपितामह दोनों ही अर्जुन के लिए परम आदरणीय थे। उन पर आक्रमण करना अर्जुन को उचित नहीं लग रहा था।
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Daily Verse # 52
Chapter # 2, Verse 5
21 January 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें अपने आदरणीय गुरुजनों को उचित स्थान और मान- सन्मान देना चाहिए । तभी हम सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
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Daily Verse # 53
Chapter # 2, Verse 6
22 January 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि जब निर्णय लेने का अवसर आता है तो मनुष्य कई प्रकार के विकल्पों और उसके परिणामों पर विचार करता है। तब उसे वही रास्ता चुनने का अधिकार रखना चाहिए जो तर्कसंगत और न्यायसंगत हो।
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Daily Verse # 54
Chapter # 2, Verse 7
23 January 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि जब हम असमंजस की स्थिति में हों तो गुरु की शरण में जाना चाहिए। वही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकते हैं।
अर्जुन एक क्षत्रीय था, युद्ध करना उसका धर्म था। परंतु युद्ध- भूमि पर खड़े होकर भी वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं था। अपने संबंधियों को देख कर वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया था और श्री कृष्ण की शरण में चला गया।
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Daily Verse # 55
Chapter # 2, Verse 8
24 January 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें जीवन की उलझनों का समाधान करने के लिए दिव्य ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। सांसारिक छात्रवृत्तियाँ हमारे जीवन की इन जटिलताओं का समाधान नहीं कर सकतीं।
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Daily Verse # 56
Chapter # 2, Verse 9
27 January 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि एक वीर पुरुष का कठिनाइयों से भागना अशोभनीय होता है।
अर्जुन एक महत्वपूर्ण योद्धा थे, इस महत्वपूर्ण समय में रणभूमि में हताश हो कर बैठना उसे शोभा नहीं देता।
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Daily Verse # 57
Chapter # 2, Verse 10
28 January 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक हमें सिखाता है कि अधूरा ज्ञान ही परेशानियों का मुख्य कारण है। परंतु जब भगवान हमारे साथ हों तो हमें प्रतिकूल परिस्थितियों में भी निराश नहीं होना चाहिए।
अर्जुन अपने अधूरे ज्ञान के कारण ही परिस्थितियों का सामना करने में स्वयं को असमर्थ पाता है, स्वयं को दोषी मानता है, दुखी होता है और श्री कृष्ण की शरण में चला जाता है।
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Daily Verse # 58
Chapter # 2, Verse 11
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि अर्जुन का मोह भंग करने के लिए श्री कृष्ण उसे ज्ञानी पुरुषों की क्या पहचान बताते हैं?
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29 January 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक सिखाता है कि ज्ञानी पुरुष वही है जो मृत और जीवित दोनों के लिये शोक नहीं करता।
अर्जुन अपने परिजनों की मृत्यु के भय से युद्ध नहीं करना चाहता था, उसकी खोई हुई चेतना लौटाने के लिए और मोह भंग करने के लिए श्री कृष्ण अर्जुन को ज्ञानी पुरुषों की पहचान बताते हैं।
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Daily Verse # 59
Chapter # 2, Verse 12
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि *श्री कृष्ण बताते हैं कि इस भौतिक शरीर की मृत्यु के पश्चात भी जीवन है।*
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January 31, 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक सिखाता है कि अगर हम विश्वास करते हैं कि आत्मा अमर है तब यह मानना तर्कसंगत होगा कि भौतिक शरीर की मृत्यु के पश्चात भी जीवन है।
भगवान अर्जुन को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि मानव का अनेक बार जन्म होता है। इसलिए युद्ध करते हुए जो मारे जाएगें, उनका फिर से जन्म हो जाएगा।
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Daily Verse # 60
Chapter # 2, Verse 13
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि *श्री कृष्ण बताते हैं बुद्धिमान मनुष्य ऐसे परिवर्तन से मोहित नहीं होते।*
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February 1, 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक सिखाता है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
श्रीकृष्ण सटीक तर्क के साथ आत्मा के एक जन्म से दूसरे जन्म में देहान्तरण के सिद्धान्त को सिद्ध करते हैं। वे यह समझा रहे हैं कि किसी भी मनुष्य के जीवन में उसका शरीर बाल्यावस्था से युवावस्था, प्रौढ़ता और बाद में वृद्धावस्था में परिवर्तित होता रहता है। आधुनिक विज्ञान से भी यह जानकारी मिलती है कि हमारी शरीर की कोशिकाएँ पुनरूज्जीवित होती रहती हैं। पुरानी कोशिकाएँ जब नष्ट हो जाती हैं तो नयी कोशिकाएँ उनका स्थान ले लेती हैं।
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Daily Verse # 61
Chapter # 2, Verse 14
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि *श्री कृष्ण बताते हैं कि कोई भी अनुभूति चिरस्थायी नहीं होती।*
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February 2, 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक सिखाता है कि इन्द्रियों द्वारा सुख और दुख की अनुभूति क्षणिक होती है। एक विवेकी मनुष्य को सुख और दुख दोनों परिस्थितियों में विचलित हुए बिना इनको सहन करने का अभ्यास करना चाहिए।
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Daily Verse # 62
Chapter # 2, Verse 15
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि *श्री कृष्ण अर्जुन को विवेक बुद्धि द्वारा इन (सुख/ दुख) द्वंद्वो से उभरने की प्रेरणा दे रहे हैं।*
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February 3, 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक सिखाता है कि सुख और दुख को एक समान समझने वाला धीर पुरुष ही मुक्ति/ मोक्ष पा सकता है।
शरीर से प्राप्त होने वाला लौकिक सुख हमारी दिव्य आत्मा को कभी संतुष्ट नहीं कर सकता। इस अन्तर को समझने के लिए हमें सांसारिक सुखों और दुखों के बोध को समान रूप से सहन करने का अभ्यास करना चाहिए तभी हम इन द्वंद्वो से ऊपर उठेंगे और भौतिक शक्तियाँ हमें अधिक समय तक दुखी नहीं कर पायेंगी।
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Daily Verse # 63
Chapter # 2, Verse 16
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि *श्री कृष्ण शरीर को नश्तर और आत्मा को अमर कहते हैं।*
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February 4, 2024
🪔🕉🪔 गीता जी का यह श्लोक सिखाता है कि भगवान, जीवात्मा और माया तीनों नित्य तत्त्व हैं।
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण यह व्याख्या करते हैं कि संसार का अस्तित्व है किन्तु यह नश्वर है, इसलिए वे इसे 'असत्' या 'अस्थायी' कहते हैं। उन्होंने संसार को 'मिथ्या' या 'अस्तित्वहीन' नहीं कहा है।
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Daily Verse # 64
Chapter # 2, Verse 17
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि *श्री कृष्ण शरीर आत्मा को अविनाशी कहते हैं।*
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February 5, 2024
🪔🕉🪔 आत्मा शरीर में व्याप्त रहकर पूरे शरीर को सचेतन बनाती है। जिस प्रकार पुष्प की सुगंध पूरे उद्यान को सुगंधित करने में सक्षम होती है उसी प्रकार से आत्मा चेतन है और यह जड़ शरीर में चेतना भरकर उसे सचेतन बना देती है।
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Daily Verse # 65
Chapter # 2, Verse 18
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि *श्रीकृष्ण अर्जुन को अवगत कराते हैं कि इस भौतिक शरीर में नित्य अविनाशी सत्ता अर्थात आत्मा वास करती है।*
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February 6, 2024
🪔🕉🪔 श्रीकृष्ण अर्जुन को अवगत कराते हैं कि इस भौतिक शरीर में नित्य अविनाशी सत्ता अर्थात आत्मा वास करती है। भौतिक शरीर पाँच तत्वों से निर्मित है और उन्हीं में मिल जाता है। परंतु आत्मा दिव्य और सनातन है।
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Daily Verse # 66
Chapter # 2, Verse 19
इस श्लोक में आप सुनेंगे कि *श्री कृष्ण अर्जुन को अवगत कराते हैं कि आत्मा न तो मरती है और न ही उसे मारा जा सकता है।*
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February 8, 2024
🪔🕉🪔 श्री कृष्ण अर्जुन को अवगत कराते हैं कि आत्मा अमर है।
मृत्यु का भ्रम हमारे भीतर इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि हम स्वयं को शरीर मानते हैं।
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Daily Verse # 67
Chapter # 2, Verse 20
इस श्लोक में *आत्मा की शाश्वतता को सिद्ध किया गया है जो सनातन है तथा जन्म और मृत्यु से परे है।*
February 9, 2024
🪔🕉🪔 आत्मा आनन्दमय, अजन्मा अविनाशी, वृद्धावस्था से मुक्त, अमर और भय मुक्त है।
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Daily Verse # 68
Chapter # 2, Verse 21
आप इस श्लोक में सुनेंगे कि *वह जो यह जानता है कि आत्मा अविनाशी, शाश्वत, अजन्मा और अपरिवर्तनीय है, वह किसी को कैसे मार सकता है या किसी की मृत्यु का कारण हो सकता है?*
February 11, 2024
🪔🕉🪔 श्रीकृष्ण अर्जुन को इस सच्चाई से अवगत कराते हैं कि आत्मा अविनाशी है। इसलिए कोई इसे मार भी नहीं सकता!
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Daily Verse # 69
Chapter # 2, Verse 22
February 12, 2024
🪔🕉🪔 जब वस्त्र फट जाते हैं या व्यर्थ हो जाते हैं तब हम उन्हें त्याग कर नये वस्त्र धारण करते हैं और ऐसा करते समय हम स्वयं को नहीं बदलते।इसी प्रकार समान दृष्टि से जब आत्मा जीर्ण शरीर को छोड़ती है तब उसमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं होता।
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Daily Verse # 70
Chapter # 2, Verse 23
February 13, 2024
आत्मा दिव्य है और इस कारण से आत्मा भौतिक विषयों के पारस्परिक संबंधों से परे है। वायु आत्मा को सुखा नहीं सकती और जल द्वारा इसे भिगोया और अग्नि द्वारा इसे जलाया नहीं जा सकता है, ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने आत्मा का विशद वर्णन किया है।
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Daily Verse # 71
Chapter # 2, Verse 24
February 14, 2024
श्रीकृष्ण भगवान ने भगवद्गीता में प्रायः पुनरुक्ति का प्रयोग अपने महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक सिद्धान्तों को रेखांकित करने के लिए एक साधान के रूप मे किया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनके भक्त उनके उपदेशों को गहनता से ग्रहण करें।
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Daily Verse # 72
Chapter # 2, Verse 25
February 15, 2024
किसी को मारने और मारे जाने पर चिंतित होना स्वाभाविक है, परंतु यह याद रखें कि आत्मा तो देह बदलती रहती है । देह के बारे में चिंता करना व्यर्थ है। अतः आत्मा को जानने के लिए आंतरिक ज्ञान आवश्यक है जो केवल धर्मग्रन्थों और गुरु द्वारा सुलभ है।
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Daily Verse # 73
Chapter # 2, Verse 26
February 16, 2024
ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान श्रीकृष्ण के युग में भी आत्मा के पुनर्जन्म और आत्मा के अस्थायित्व के संबंध में बौद्ध दर्शन की विचारधारा विद्यमान थी। इसलिए श्रीकृष्ण यह व्याख्या कर रहे हैं कि यदि अर्जुन आत्मा के एक जन्म से दूसरे जन्म अर्थात पुनर्जन्म के विचार को स्वीकार करता है तब भी उसके शोक करने का कोई कारण नहीं होना चाहिए। कोई शोक क्यों न करें? इसे अब अगले श्लोक में स्पष्ट किया जाएगा।
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Daily Verse # 74
Chapter # 2, Verse 27
February 18, 2024
श्री कृष्ण इस श्लोक में यह समझा रहे हैं कि एक दिन जीवन का अंत अपरिहार्य है, इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को इस अनिवार्य मृत्यु के लिए शोक नहीं करना चाहिए।
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Daily Verse # 75
Chapter # 2, Verse 28
February 19, 2024
🪔🕉🪔 श्रीकृष्ण इस श्लोक में यह समझा रहे हैं कि एक दिन जीवन का अंत अपरिहार्य है, इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को इस अनिवार्य मृत्यु के लिए शोक नहीं करना चाहिए।शोक ग्रस्त होने का मुख्य कारण केवल आसक्ति ही है जो मिथ्या मोह के कारण उत्पन्न होती है। इस श्लोक में उन्होंने आत्मा और शरीर दोनों को समाविष्ट किया है।
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Daily Verse # 76
Chapter # 2, Verse 29
February 20, 2024
यह संपूर्ण संसार आश्चर्य है क्योंकि एक अणु से लेकर विशाल आकाश गंगाएँ भगवान की अद्भुत कृतियाँ हैं। एक छोटे-से पुष्प की संरचना, सुगंध और सुन्दरता भी अपने आप में एक आश्चर्य है। परम-पिता-परमात्मा स्वयं सबसे बड़ा आश्चर्य है।
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Daily Verse # 77
Chapter # 2, Verse 30
February 21, 2024
अपने उपदेशों के अंतर्गत भगवान श्रीकृष्ण प्रायः कुछ श्लोकों में अपने दृष्टिकोण का वर्णन करते हैं और फिर वे एक श्लोक मे अपने उन उपदेशों का सार प्रस्तुत करते है।
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Daily Verse # 78
Chapter # 2, Verse 31
February 22, 2024
अर्जुन वृत्ति से योद्धा था और इसलिए एक योद्धा के रूप में वर्णानुसार उसका कर्त्तव्य धर्म की मर्यादा के लिए युद्ध करना था। श्रीकृष्ण इसे स्वधर्म अथवा शारीरिक स्तर पर निर्धारित कर्तव्यों के रूप में सम्बोधित करते हैं।
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Daily Verse # 79
Chapter # 2, Verse 32
February 23, 2024
क्षत्रिय वर्ण के धर्म के अनुसार योद्धा का यह धर्म होता है कि वह आवश्यकता पड़ने पर समाज की रक्षा हेतु निडरतापूर्वक अपने प्राणों का बलिदान करने से पीछे न हटे।
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Daily Verse # 80
Chapter # 2, Verse 33
February 24, 2024
श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि अर्जुन अपने युद्ध करने के कर्तव्यों को घृणास्पद और कष्टदायक मानते हुए उसकी अवहेलना करने का विचार करता है तो वह पाप अर्जित करेगा।
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Daily Verse # 81
Chapter # 2, Verse 34
February 25, 2024
संसार के कई समुदायों में यह नियम लागू है कि जब कोई योद्धा युद्ध क्षेत्र में कायरता प्रदर्शित करते हुए युद्धस्थल से भाग जाता है तब उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। इसलिए यदि अर्जुन अपने कर्त्तव्य पालन से च्युत हो जाता है तब उसे इससे मिलने वाले अपमान की अत्यंत पीड़ा सहन करनी पड़ेगी।
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Daily Verse # 82
Chapter # 2, Verse 35
February 26, 2024
अर्जुन एक पराक्रमी योद्धा के रूप में विख्यात था और कौरव पक्ष के महा बलशाली योद्धा जैसे भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण आदि के लिए शक्तिशाली प्रतिद्वन्दी था। उसने स्वर्ग के कई देवताओं के साथ युद्ध कर ख्याति प्राप्त की थी।अब महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने से पहले यदि अर्जुन युद्ध भूमि से पलायन कर जाता तब ये महायोद्धा यह नहीं समझते कि अपने स्वजनों के अनुराग से प्रेरित होकर उसने युद्ध पलायन किया था बल्कि इसके विपरीत वे उसे कायर मानते हुए यह समझते कि उनके पराक्रम के भय से वह युद्ध से विमुख हुआ था।
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Daily Verse # 83
Chapter # 2, Verse 36
February 27, 2024
यदि अर्जुन युद्ध से पलायन करता है तब न केवल युद्ध के लिए एकत्रित वीर योद्धाओं की दृष्टि में अर्जुन का मान-सम्मान कम हो जाएगा अपितु उसे तुच्छ भी समझा जाएगा।
श्रीकृष्ण अर्जुन को स्मरण करवाना चाहते हैं कि व्यंग्यपूर्ण कथन उसके लिए अत्यंत दुखदायी होंगे।
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Daily Verse # 84
Chapter # 2, Verse 37
February 28, 2024
यदि अर्जुन युद्ध में विजय प्राप्त करता है तब वह पृथ्वी का साम्राज्य प्राप्त करेगा और यदि अपने धर्म का पालन करने के लिए उसे अपने जीवन का बलिदान भी करना पड़ा तब वह स्वर्गलोक में जाएगा।
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Daily Verse # 85
Chapter # 2, Verse 38
February 29, 2024
श्रीकृष्ण अर्जुन को परामर्श देते हैं कि वह युद्ध के परिणामों से विरक्त होकर केवल अपने कर्तव्यों के पालन की ओर ध्यान दे। जब वह समान भावना की मनोदृष्टि से युद्ध करेगा, विजय और पराजय तथा सुख-दुख को एक समान समझेगा, तब अपने शत्रुओं का वध करने पर भी उसे पाप नहीं लगेगा।
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Daily Verse # 86
Chapter # 2, Verse 39
March 1, 2024
श्री कृष्ण अब कहते हैं कि वे बिना फल की इच्छा के कर्मयोग का ज्ञान प्रकट कर रहे हैं। इसके लिए कर्म के फल के प्रति विरक्ति होना आवश्यक है। ऐसी विरक्ति विवेक के साथ बुद्धि का प्रयोग करने से आती है इसलिए श्रीकृष्ण ने अपनी इच्छा के अनुसार इसे बुद्धि योग या बुद्धि का योग कहा है। आगे श्लोक 2.41 और 2.44 में श्रीकृष्ण यह व्याख्या करेंगे कि मन में विरक्ति का भाव उत्पन्न करने से बुद्धि किस प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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Daily Verse # 87
Chapter # 2, Verse 40
March 2, 2024
श्रीकृष्ण यह भी कहते हैं कि इस मार्ग का अनुसरण करने के प्रयास से किसी प्रकार की हानि नहीं होती क्योंकि वर्तमान जीवन में हम जो भौतिक पदार्थ और धन सम्पदा इकट्ठा करते हैं, उसे बाद में मृत्यु के समय हम इसी संसार मे छोड़ जाते हैं। लेकिन यदि हम भक्ति योग के मार्ग पर चलते हुए आध्यात्मिक उन्नति करते हैं तब उसे भगवान हमारे पुण्य कर्मों में जोड़ते हैं और उसका फल हमें अगले जन्म में देते हैं ताकि हम अपनी आध्यात्मिक यात्रा को पुनः वहीं से आरम्भ करने के योग्य हो सकें जहाँ से हमने इसे छोड़ा था। इस प्रकार अर्जुन को इसके लाभों से अवगत करवाने के पश्चात श्रीकृष्ण अब उसे बिना आसक्ति के निष्काम भाव से कर्मयोग के मार्ग पर चलने का उपदेश देना आरम्भ करते हैं।
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Daily Verse # 88
Chapter # 2, Verse 41
March 4, 2024
आसक्ति मानसिक क्रिया है। इसका अभिप्राय यह है कि मन बार-बार अपनी आसक्ति के विषयों की ओर भागता है जो किसी व्यक्ति, इन्द्रिय विषय, प्रतिष्ठा, शारीरिक सुख और परिस्थितियों इत्यादि में हो सकती है। यदि किसी व्यक्ति या इन्द्रिय विषय का विचार हमारे मन में बार-बार उठता है तब निश्चय ही यह मन का उसमें आसक्त होने का संकेत है। यदि यह मन ही आसक्त हो जाता है तब भगवान इस आसक्ति के विषय के बीच बुद्धि को क्यों लाना चाहते हैं। क्या आसक्ति का उन्मूलन करने में बुद्धि की कोई भूमिका होती है? हमारे शरीर में सूक्ष्म अंत:करण होता है जिसे हम बोलचाल की भाषा में हृदय भी कहते हैं। यह मन, बुद्धि और अहंकार से निर्मित होता है। इस सूक्ष्म शरीर में बुद्धि मन से श्रेष्ठ है जो निर्णय लेती है जबकि मन में इच्छाएँ उत्पन्न होती है और यह बुद्धि द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार मोह के विषयों में अनुरक्त हो जाता है।
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Daily Verse # 89
Chapter # 2, Verse 42
March 5, 2024
अल्पज्ञानी लोग स्वर्ग की कामना रखते हैं और सोचते हैं कि वेदों का केवल यही उद्देश्य है। इस प्रकार वे भगवद्प्राप्ति का प्रयास किए बिना निरन्तर जन्म और मृत्यु के चक्र में घूमते रहते हैं। जबकि आध्यात्मिक चिन्तन में लीन साधक स्वर्ग की प्राप्ति को अपना लक्ष्य नहीं बनाते।
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Daily Verse # 90
Chapter # 2, Verse 43
March 6, 2024
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Daily Verse # 91
Chapter # 2, Verse 44
March 7, 2024
जो स्वर्ग जैसे उच्च लोकों का सुख पाने के प्रयोजन से वेदों में वर्णित आडम्बरपूर्ण कर्मकाण्डों में व्यस्त रहते है और स्वयं को धार्मिक ग्रंथों का विद्वान समझते हैं किन्तु वास्तव में वे मूर्ख हैं। वे एक अंधे व्यक्ति द्वारा दूसरे अंधे को रास्ता दिखाने वाले के समान हैं।
वे मनुष्य जिनका मन इन्द्रिय सुखों के प्रति आसक्त रहता है। वे सांसारिक विषयों और ऐश्वर्यों का भोग करने के लिए चिन्तित रहते हैं। वे अपनी बुद्धि का प्रयोग अपनी आय बढ़ाने, अपनी लौकिक प्रतिष्ठा बढ़ाने और भौतिक सुखों का संवर्धन करने में लगे रहते हैं। इस प्रकार से भ्रमित होकर वे भगवद्प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए अपेक्षित दृढ़-संकल्प लेने में असमर्थ रहते हैं।
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Daily Verse # 92
Chapter # 2, Verse 45
March 8, 2024
जब श्रीकृष्ण अर्जुन को वेदों की अवहेलना करने के लिए कहते हैं तब उनके इस कथन को आगे आने वाले श्लोकों के संदर्भ में समझना आवश्यक है जिनमें वे यह इंगित कर रहे हैं कि अर्जुन वेदों के उन खण्डों पर अपना ध्यान आकर्षित न करे जिनमें भौतिक सुखों के लिए धार्मिक विधि विधानों और अनुष्ठानों को प्रतिपादित किया गया है अपितु परम सत्य को जानने के लिए वह स्वयं को आध्यात्मिकता के उच्च स्तर तक उठाने के लिए वैदिक ज्ञान से परिपूर्ण वेदों के दिव्य खण्डों पर अपना ध्यान केन्द्रित करे।
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Daily Verse # 93
Chapter # 2, Verse 46
March 9, 2024
भगवान कहते हैं- वेदों में मनुष्य के लिए सामाजिक और धार्मिक विधि विधानों से संबंधित विभिन्न कर्त्तव्य निर्धारित किए गए हैं लेकिन वे मनुष्य जो इनके अंतर्निहित अभिप्राय को समझ लेते हैं और उनके मध्यवर्ती उपदेशों की अवहेलना करते हैं तथा पूर्ण समर्पण भाव से मेरी भक्ति और सेवा में तल्लीन रहते हैं, उन्हें मैं अपना परम भक्त मानता हूँ।
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Daily Verse # 94
Chapter # 2, Verse 47
March 10, 2024
*यह भगवद्गीता का अत्यंत प्रसिद्ध श्लोक है।* य़ह श्लोक हमारे जीवन का मैनुअल है, जो हमें सिखाता है कि
● कर्म करो परन्तु फल की चिन्ता न करो।
● कर्मों का फल हमारे सुख के लिए नहीं है।
● कर्म करते समय कर्ता होने का अहंकार न करो।
● अकर्मण्यता के प्रति आसक्त न होना।
ॐ श्रीकृष्ण अर्जुन को फल की चिन्ता करने के स्थान पर केवल शुभ कर्म करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करने का उपदेश देते हैं।
ॐ अर्जुन स्वयं को अपने कर्मों के फलों का भोक्ता न समझें।
ॐ भगवान ही केवल उन शक्तियों के एक मात्र स्रोत हैं जिनके द्वारा हम कर्म करते हैं।
ॐ निष्क्रियता के प्रति आसक्ति होने से कभी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता और भगवान श्रीकृष्ण इसकी स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं।
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Daily Verse # 95
Chapter # 2, Verse 48
March 11, 2024
समता का भाव जो हमें सभी परिस्थितियों को शांतिपूर्वक स्वीकार करने के योग्य बनाता है और यह इतना प्रशंसनीय है कि भगवान ने इसे 'योग' अर्थात भगवान के साथ एकत्व होना बताया है। यह समबुद्धि पिछले श्लोक में वर्णित ज्ञान का अनुसरण करने से आती है। जब हम यह जान जाते हैं कि प्रयास करना हमारे हाथ में है और परिणाम सुनिश्चित करना हमारे नियंत्रण मे नहीं है तब हम केवल अपने कर्तव्यों के पालन की ओर ध्यान देते हैं।
यदि हम संघर्ष करते हुए प्रतिकूल परिस्थितियों का उन्मूलन करना चाहते हैं तब भी हम कष्टों को टालने में असमर्थ होंगे। यदि हम अपने मार्ग में आने वाली सभी कठिनाईयों का सामना करना सीख लेते हैं और उन्हें भगवान की इच्छा पर छोड़ देते हैं तब इसे ही वास्तविक 'योग' कहा जाएगा।
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Daily Verse # 96
Chapter # 2, Verse 49
March 12, 2024
श्रीकृष्ण घोषणा करते हैं कि जो लोग स्वयं को सुखी रखने के प्रयोजनार्थ कर्म करते हैं, वे दुखी होते हैं। वे लोग जो बिना फल की आसक्ति के समर्पित होकर समाज के कल्याणार्थ अपने कर्त्तव्य का पालन करते हैं, श्रेष्ठ कहलाते हैं और वे लोग जो अपने कर्मों के फल भगवान को अर्पित कर देते हैं, वे वास्तव में ज्ञानी हैं।
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Daily Verse # 97
Chapter # 2, Verse 50
March 13, 2024
'कर्मयोग' विज्ञान के संबंध में उपदेश सुनकर प्रायः लोग आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि यदि वे परिणाम के प्रति आसक्ति का त्याग कर देते हैं तब उनकी कार्यकुशलता कम हो जाएगी। भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि बिना निजी स्वार्थ के कार्य करने से हमारे कार्य की गुणवत्ता कम नहीं होती अपितु हम पहले से अधिक कुशलता प्राप्त कर लेते हैं।
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Daily Verse # 98
Chapter # 2, Verse 51
March 14, 2024
श्रीकृष्ण निरन्तर फल के प्रति आसक्त हुए बिना कर्म करने के विषय को समझा रहे हैं और कहते हैं कि यह विरक्ति मनुष्य को सुख-दुख की अनुभूति से परे की अवस्था में ले जाती है। हम प्रेम के लिए लालायित रहते हैं किन्तु हमें निराशा मिलती है, हम जीवित रहना चाहते हैं लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हम प्रतिक्षण मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं।
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Daily Verse # 99
Chapter # 2, Verse 52
March 15, 2024
सिद्ध ज्ञानी पुरुष यह समझने के पश्चात कि साकाम कर्मों से प्राप्त होने वाले सुख इस जन्म में तथा स्वर्ग में अस्थायी और कष्टदायी होते हैं इसलिए वे वैदिक कर्मकाण्डों से परे रहते हैं
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Daily Verse # 100
Chapter # 2, Verse 53
March 16, 2024
यदि तू पूछे कि मोहरूप मलिनतासे पार होकर आत्मविवेकजन्य बुद्धिको प्राप्त हुआ मैं कर्मयोगके फलरूप परमार्थयोगको ( ज्ञानको ) कब पाऊँगा तो सुन अनेक साध्य साधन और उनका सम्बन्ध बतलानेवाली श्रुतियोंसे विप्रतिपन्न अर्थात् नाना भावोंको प्राप्त हुई विक्षिप्त हुई तेरी बुद्धि जब समाधिमें यानी जिसमें चित्तका समाधान किया जाय वह समाधि है इस व्युत्पत्तिसे आत्माका नाम समाधि है उसमें अचल और दृढ़ स्थिर हो जायगी यानी विक्षेपरूप चलनसे और विकल्पसे रहित होकर स्थिर हो जायगी। तब तू योगको प्राप्त होगा अर्थात् विवेकजनित बुद्धिरूप समाधिनिष्ठाको पावेगा।
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Daily Verse # 101
Chapter # 2, Verse 54
March 17, 2024
अर्जुन श्रीकृष्ण से 16 प्रश्न पूछता है।
पहला प्रश्न ⏬️
श्रीकृष्ण से पूर्ण योग की अवस्था या समाधि के विषय पर उपदेश सुनकर अर्जुन स्वाभाविक प्रश्न पूछता है। वह ऐसी अवस्था वाले सिद्धपुरुष के मन की प्रकृति के संबंध में मनुष्यों को जानना चाहता है। इसके अतिरिक्त वह यह भी जानना चाहता है कि दिव्य चेतना में स्थित मनुष्य की मानसिकता उसके स्वभाव में कैसे प्रकट होती है।
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हरे कृष्णा!
अर्जुन द्वारा पूछा गया हर एक प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है!
*पहले प्रश्न ( Divya Gyan # 101)* का उत्तर जानने के लिए कल से हरेक श्लोक ध्यान से जरूर पढ़ें और अपने परिवार के साथ जरूर share करें!
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Daily Verse # 102
Chapter # 2, Verse 55
March 18, 2024
इस श्लोक से श्री कृष्ण अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देना आरम्भ करते हैं और अध्याय के अंत तक निरन्तर उत्तर देते रहते हैं।*
जब कोई अपने मन से समस्त स्वार्थयुक्त कामनाओं का उन्मूलन करता है, तब सांसारिक बंधनों से जकड़ी जीवात्मा जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाती है और भगवान के समान सदगुणी हो जाती है।
श्रीकृष्ण उपर्युक्त श्लोक में कहते हैं कि लोकातीत अवस्था में स्थित मनुष्य वह है जिसने अपनी कामनाओं और इन्द्रिय तृप्ति का त्याग कर दिया है और जो आत्म संतुष्ट रहता है।
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Daily Verse # 103
Chapter # 2, Verse 56
March 19, 2024
*श्री कृष्ण अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देना आरम्भ करते हैं और अध्याय के अंत तक निरन्तर उत्तर देते रहते हैं।*
इस श्लोक में श्रीकृष्ण स्थिर बुद्धि वाले मनीषी की निम्न प्रकार से व्याख्या करते हैं।
1. वीत रागः वे सुख की लालसा को त्याग देते हैं।
2. वीत भयः वे भयमुक्त होते हैं।
3. वीत क्रोधः वे क्रोध रहित होते हैं।
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Daily Verse # 104
Chapter # 2, Verse 57
March 20, 2024
लोगों में ज्ञानोदय की अवस्था में पहुँचने की स्वाभाविक अभिलाषा होती है जिसका वर्णन श्रीकृष्ण, अर्जुन से करते हैं।वास्तव में ज्ञानोदय की उत्कंठा आत्मा की मूल प्रवृत्ति है। इसलिए सकल विश्व की सभी संस्कृतियों में सभी लोग जाने या अनजाने में इसकी अभिलाषा रखते हैं। श्रीकृष्ण ने इसे यहाँ अर्जुन के प्रश्न के उत्तर के रूप में प्रस्तुत किया है।
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Daily Verse # 105
Chapter # 2, Verse 58
March 21, 2024
इन्द्रियों की तुष्टि करने के लिए उसके विषयों से संबंधित इच्छित पदार्थों की आपूर्ति करते हुए इन्द्रियों को शांत करने का प्रयास ठीक वैसा ही है जैसे जलती आग में घी की आहुति डालकर उसे बुझाने का प्रयास करना। इससे अग्नि कुछ क्षण के लिए कम हो जाती है किन्तु फिर एकदम और अधिक भीषणता से भड़कती है। इस प्रकार भगवद्गीता में वर्णन किया गया है कि इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होती और जब उनकी तुष्टि की जाती है तब वे और अधिक प्रबल हो जाती हैं।
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Daily Verse # 106
Chapter # 2, Verse 59
March 22, 2024
जब कोई व्यक्ति उपवास रखते समय भोजन ग्रहण करना छोड़ देता है तब इन्द्रिय तृप्ति की इच्छा क्षीण हो जाती है। इसी प्रकार रोगी व्यक्ति में भी विषय भोगों की रुचि कम हो जाती है। ऐसी विरक्ति अस्थायी होती है क्योंकि मन में कामनाओं के बीज विद्यमान रहते हैं। जब उपवास समाप्त हो जाता है या रोग दूर हो जाता है, तब कामनाएँ पुनः जागृत हो जाती है।
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Daily Verse # 107
Chapter # 2, Verse 60
March 23, 2024
इन्द्रियाँ उस अनियंत्रित जंगली घोड़े के समान हैं जिसकी नयी-नयी कमान कसी गयी हो। ये उतावली और अचेत होती हैं इसलिए इन्हें अनुशासित करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है जिसका सामना साधक को अपने भीतर करना पड़ता है।*
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Daily Verse # 108
Chapter # 2, Verse 61
March 24, 2024
इस दुराग्राही मन और इन्द्रियों को वश में करना आवश्यक है, श्रीकृष्ण अब इन्हें सुचारू रूप से नियंत्रित करने की विधि प्रकट करते हैं जो कि भगवान की भक्ति में तल्लीनता है।
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Daily Verse # 109
Chapter # 2, Verse 62
March 25, 2024
इस श्लोक और आगे के श्लोकों में श्रीकृष्ण ने मन के कार्य-कलापों का पूर्ण एवं सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि से वर्णन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि जब हम कुछ पदार्थों से मिलने वाले सुख का बार-बार चिन्तन करते हैं तब मन उनमें आसक्त हो जाता है। क्रोध, लालच, वासना आदि को वैदिक ग्रंथों में मानस रोग या मानसिक रोग कहा गया है।
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Daily Verse # 110
Chapter # 2, Verse 63
March 26, 2024
विषयों का चिन्तन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्ति से कामना पैदा होती है। कामना से क्रोध पैदा होता है। क्रोध होने पर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोह से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धि का नाश हो जाता है। बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य का पतन हो जाता है।
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Daily Verse # 111
Chapter # 2, Verse 64
March 27, 2024
यदि हम बार-बार यह स्मरण करते हैं कि भगवान में ही सुख है तब भगवान में हमारी भक्ति विकसित होगी। यह दिव्य प्रेम भौतिक आसक्ति के समान मन को दूषित नहीं करेगा अपितु उसे शुद्ध कर देगा। भगवान शुद्ध तत्त्व हैं और जब हम अपने मन को उनमें लीन करते हैं तब मन भी शुद्ध हो जाता है। इस प्रकार श्रीकृष्ण हमें मोह और कामनाओं का त्याग करने का उपदेश देते हैं। यहाँ वे केवल लौकिक मोह और कामनाओं के संबंध में चर्चा कर रहे हैं।
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Daily Verse # 112
Chapter # 2, Verse 65
March 29, 2024
अपनी कृपा द्वारा भगवान जो सत्-चित्-आनन्द हैं, दिव्य ज्ञान व दिव्य प्रेम और दिव्य आनन्द प्रदान करते हैं। यह कृपा प्रेम आनन्द और भगवद्ज्ञान प्राप्त करने में ध्रुव तारे के समान बुद्धि की घेराबंदी करती है। भगवद्कृपा से जब हमें दिव्य प्रेम रस का अनुभव होता है तब इन्द्रियों के सुखों को प्राप्त करने की उत्तेजना का शमन हो जाता है। एक बार जब सांसारिक विषय भोगों की लालसा समाप्त हो जाती है तब मनुष्य सभी दुखों से परे हो जाता है और मन शांत हो जाता है। इस प्रकार की आंतरिक संतुष्टि से बुद्धि दृढ़ता से यह निर्णय करती है कि समस्त सुखों और आत्मा के अंतिम लक्ष्य का एकमात्र उद्गम भगवान हैं।
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Daily Verse # 113
Chapter # 2, Verse 66
March 31, 2024
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो अपनी इन्द्रियों पर संयम नहीं रखते और निरंतर उनकी तृप्ति करने मे लगे रहते हैं, वे माया के तीन गुणों के बंधनों मे बंध जाते हैं। भौतिक इच्छाएँ खुजली वाली खाज जैसी हैं जिसमें हम जितना अधिक लिप्त होते हैं उतना ही अधिक हमारा विनाश होता है। इस प्रकार सांसारिक विषय भोगों में लिप्त रहने पर हम कैसे वास्तविक सुख पा सकते हैं?
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Daily Verse # 114
Chapter # 2, Verse 67
April 4 , 2024
अयुक्त पुरुष में बुद्धि क्यों नहीं होती इस पर कहते हैं क्योंकि अपने अपने विषय में विचरने वाली अर्थात् विषयों में प्रवृत्त हुई इन्द्रियोंमेंसे जिसके पीछे पीछे यह मन जाता है विषयों में प्रवृत्त होता है वह उस इन्द्रिय के विषयको विभागपूर्वक ग्रहण करनेमें लगा हुआ मन इस साधक की आत्म अनात्म सम्बन्धी विवेकज्ञानसे उत्पन्न हुई बुद्धि को हर लेता है अर्थात् नष्ट कर देता है।
कैसे जैसे जलमें नौका को वायु हर लेता है वैसे ही अर्थात् जैसे जल में चलने की इच्छा वाले पुरुषों की नौका को वायु गन्तव्य मार्ग से हटाकर उल्टे मार्ग पर ले जाता है वैसे ही यह मन आत्मविषयक बुद्धि को विचलित करके विषय विषयक बना देता है।
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Daily Verse # 115
Chapter # 2, Verse 68
April 5 , 2024
प्रबुद्ध आत्माएँ लोकातीत अर्थात दिव्य ज्ञान द्वारा बुद्धि को वश में रखती हैं और फिर विशुद्ध बुद्धि के साथ वे मन को नियंत्रित करती हैं तथा मन का प्रयोग इन्द्रियों पर लगाम कसने के लिए करती हैं लेकिन प्रतिबंधित सांसारिक अवस्था में इसका उलटा होता है। इन्द्रियाँ मन को अपनी दिशा की ओर खींचती है और मन बुद्धि पर हावी हो जाता है और फिर बुद्धि वास्तविक कल्याण के मार्ग से भटक जाती है। इसलिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि बुद्धि आध्यात्मिक ज्ञान से दिव्य होगी तब इन्द्रियाँ वश में रहेंगी और जब इन्द्रियों पर संयम होगा तब फिर बुद्धि दिव्य चिन्तन के मार्ग से विचलित नहीं होगी।
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Daily Verse # 116
Chapter # 2, Verse 69
April 18, 2024
यह जो लौकिक और वैदिक व्यवहार है वह सबकासब अविद्याका कार्य है अतः जिसको विवेकज्ञान प्राप्त हो गया है ऐसे स्थितप्रज्ञके लिये अविद्याकी निवृत्तिके साथ ही साथ ( यह व्यवहार भी ) निवृत्त हो जाता है और अविद्याका विद्याके साथ विरोध होनेके कारण उसकी भी निवृत्ति हो जाती है। इस अभिप्रायको स्पष्ट करते हुए कहते हैं
तामस स्वभाव के कारण सब पदार्थोंका अविवेक कराने वाली रात्रि का नाम निशा है।
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Daily Verse # 117
Chapter # 2, Verse 70
April 19, 2024
जिस प्रकार जल से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में अर्थात् अचल भावसे जिसकी प्रतिष्ठा स्थिति है ऐसे अपनी मर्यादा में स्थित समुद्र में सब ओर से गये हुए जल उसमें किसी प्रकारका विकार उत्पन्न किये बिना ही समा जाते हैं।
उसी प्रकार विषयों का सङ्ग होने पर भी जिस पुरुष में समस्त इच्छाएँ समुद्र में जलकी भाँति कोई भी विकार उत्पन्न न करती हुई सब ओर से प्रवेश कर जाती हैं अर्थात् जिसकी समस्त कामनाएँ आत्मा में लीन हो जाती हैं उसको अपने वश में नहीं कर सकतीं
उस पुरुष को शान्ति मोक्ष मिलता है दूसरेको अर्थात् भोगों की कामना करने वाले को नहीं मिलता। अभिप्राय यह कि जिनको पाने के लिये इच्छा की जाती है उन भोगों का नाम काम है उनको पाने की इच्छा करना जिसका स्वभाव है वह कामकामी है वह उस शान्ति को कभी नहीं पाता।
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Daily Verse # 118
Chapter # 2, Verse 71
April 20, 2024
ऐसा है इसलिये जो संन्यासी पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को और भोगों को अशेषतः त्यागकर अर्थात् केवल जीवन मात्र के निमित्त ही चेष्टा करने वाला होकर विचरता है तथा जो स्पृहा से रहित हुआ है अर्थात् शरीर जीवन मात्रमें भी जिसकी लालसा नहीं है। ममता से रहित है अर्थात् शरीर जीवन मात्र के लिये आवश्यक पदार्थों के संग्रह में भी यह मेरा है ऐसे भाव से रहित है। तथा अहंकार से रहित है अर्थात् विद्वत्ता आदि के सम्बन्ध से होने वाले आत्माभिमान से भी रहित है। वह ऐसा स्थितप्रज्ञ ब्रह्मवेत्ता ज्ञानी संसारके सर्वदुःखों की निवृत्तिरूप मोक्ष नामक परम शान्ति को पाता है अर्थात् ब्रह्मरूप हो जाता है।
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Daily Verse # 119
Chapter # 2, Verse 72
April 21, 2024
एक बार जब आत्मा भगवान को पा लेती है, तब वह सदा के लिए उससे एकनिष्ठ हो जाती है। इसके पश्चात माया का अंधकार उस पर कभी हावी नहीं हो पाता"। माया से सर्वदा मुक्ति को निर्वाण, मोक्ष इत्यादि कहा जाता है। फलस्वरूप मुक्ति ही भगवद्प्राप्ति का वास्तविक परिणाम है।
जय श्री कृष्ण!
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