Sri Durga Chalisa with Lyrics and Meaning
Sri Durga Chalisa with Lyrics and Meaning
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श्री दुर्गा चालीसा में माँ भगवती आदि शक्ति का गुणगान किया गया है। दुर्गा चालीसा की रचना देवीदास जी ने की थी। माना जाता है कि कलिकाल में दुर्गा चालीसा के पाठ से व्यक्ति सभी प्रकार के भवबंधनों से पार होकर मुक्त हो जाता है।
👉 Learn and chant:
1. नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥
सुख प्रदान करने वाली, हे दुर्गा मां, मेरा नमस्कार स्वीकार करें और मेरे सभी दुखों को हर लें।
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2. निराकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
माँ, आपकी ज्योति का प्रकाश अनंत है और इस प्रकाश से पृथ्वी, आकाश और पाताल तीनों ही लोकों में उजाला छाया हुआ है।
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3. शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
हे माता , आपका मुख बहुत विशाल है और चंद्रमा के समान चमकदार है। वहीं आपकी आंखें लाल और भौंहें बहुत ही विकराल हैं।
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4. रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
हे माँ भवानी! आपका स्वरूप बहुत ही सुंदर है, जिसे बार-बार देखते रहने का मन करता है। आपके दर्शन पाकर भक्त जनों को परम सुख की प्राप्ति होती है।
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5. तुम संसार शक्ति लय कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
हे माँ भवानी! संसार में जितनी भी शक्तियां हैं, वह सभी आप में समाहित हैं। इस जगत को चलाने वाली और अपने बच्चों का पालन करने वाली, हे मां दुर्गा ! आप ही हमें अन्न और धन प्रदान करती हैं।
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6. अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
हे माँ ! जग की पालक होने के कारण आपको अन्नपूर्णा भी कहते हैं। आप ही जगत को पैदा करने वाली आदि सुंदरी बाला अर्थात जगत जननी हो।
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7. प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
हे माँ ! जब विश्व में घोर अपराध बढ़ जाता है, तो आप ही प्रलय लाती हैं। महादेव भगवान शिव की प्रिय गौरी यानि पार्वती भी आप ही हैं।
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8. शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
भगवान शिव सहित ब्रह्मा, विष्णु और सभी योगी आपका गुणगान और ध्यान करते हैं।
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9. रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
हे माँ ! आप ही माता सरस्वती हैं । आपने ही अपनी शक्ति से सभी ऋषि- मुनियों को सद्बुद्धि दी है और उनका उद्धार किया है।
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10. धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
प्रकट हुई फाड़कर खम्बा॥
श्री हरि भक्त प्रहलाद को उसके राक्षस पिता हिरण्यकश्यप से बचाने के लिए, आपने ही श्री नरसिंह का रूप धारण किया था और खंबा फाड़ कर आप प्रकट हो गई थीं।
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11. रक्षा कर प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
हे माँ ! आपने ही श्री हरि के भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और हरिण्याकश्यपु जैसे दुष्ट का संहार किया ।
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12. लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
आपने ही इस संसार में लक्ष्मी का रुप धारण किया व भगवान श्री नारायण अर्थात विष्णु की पत्नी बनी।"
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13. क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ दया की मूर्ति के रूप में आप ही विराजमान हैं और अपने सभी भक्तों पर वहां से कृपा बरसाती रहती हैं।
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14. हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
हिंगलाज की भी देवी आप ही हैं और आपकी महिमा अनंत है, जिसका बखान तीनो लोक में होता है।
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15. नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥
हे देवी! आपके एक नहीं अनेक स्वरूप हैं और आप ही मातंगी देवी, धूमावती, भुवनेश्वरी और बगलामुखी माता हैं। आपके यह सभी रूप सुख प्रदान करते हैं।
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16.
श्री भैरव तारा जग तारिणि।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि॥
आप भैरव और तारादेवी के रूप में इस जगत का उद्धार कर रही हैं, वहीं छिन्नमस्तिका देवी के रूप में आप सभी भक्तों के दुख और कष्टों को हर लेती हैं।
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17.
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
हे माँ भवानी ! आप शेर की सवारी करती हैं लागुंर वीर यानि भगवान श्री बजरंग बलि हनुमान आपकी अगवानी करते हुए चलते हैं"
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18.
कर में खप्पर खड्ग विराजे।
जाको देख काल डर भाजे॥
देवी दुर्गा के हाथों में जब काल रूपी खप्पर होता है, तो उसे देख कर स्वयं काल भी भयभीत हो जाता है।
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19. सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
हाथों में त्रिशूल जैसे शक्तिशाली शस्त्र को धारण करने वाली मां दुर्गा को देख कर शत्रुओं का हृदय तक कांप उठता है।
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20. नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहूं लोक में डंका बाजत॥
नगरकोट में तुम्हीं रहती हो और तीनों लोक में तुम्हारे नाम का ही डंका बजता है।
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21. शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
आपने शुम्भ-निशुम्भ जैसे राक्षसों का संहार किया है और रक्तबीज जैसे वरदान प्राप्त राक्षस का भी नाश किया है, जिसके रक्त की एक बूंद गिरने पर सैकड़ों राक्षस पैदा हो जाते थे। इतना ही नहीं, शंख नाम के राक्षस को भी आपने ही मारा है।
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22. महिषासुर नृप अति अभिमानी
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
हे महाकाली माँ! जब दैत्यराज महिषासुर के पापों का घड़ा भर गया, तब उसके अभिमान को चूर-चूर करने और व्याकुल धरती के बोझ को हल्का करने के लिए, आप काली का विकराल रूप धारण कर आ थीं।
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23. रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
हे महाकाली माँ! आप काली का विकराल रूप धारण कर आ थीं और महिषासुर का उसकी सेना सहित सर्वनाश कर दिया था।
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24.
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
जब-जब आपके भक्तों पर मुसीबत आई है, तब-तब आप ही उनकी सहायता करने के लिए आई हैं।
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25.
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तव महिमा सब रहें अशोका॥
जब तक देवों की अमरपुरी और तीनों लोकों का अस्तित्व है, तब तक आपके भक्तों को कोई शोक नहीं घेर सकता है।
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26.
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजे नर नारी॥
ज्वाला की ज्योति में भी तुम ही समाहित हो माता। तब ही तो ज्वालाजी में अनंत काल से ज्योति जलती चली आ रही है। इसलिए सभी नर-नारी आपकी पूजा करते हैं।
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27.
प्रेम भक्ति से जो यश गावे।
दु:ख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
हे माँ ! जो भी भक्त प्रेम और श्रद्धा से आपके यश का गुणगान करता है, दुख एवं दरिद्रता उसके नजदीक नहीं आती है।
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28.
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताको छूटि जाई॥
जो प्राणी मन से आपका ध्यान करता है, उसे जन्म-मरण के चक्र से आप निश्चित ही मुक्ति दे देती हैं।
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29.
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
आपकी शक्ति के बिना तो योग भी नहीं संभव है, इसलिए योगी, ऋषि-मुनी और साधु-संत भी आपका ही नाम पुकारते हैं।
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30.
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
शंकराचार्य जी ने आचारज नाम का तप किया और इससे काम, क्रोध, मद, लोभ आदि सभी पर उनको जीत हासिल हो गई।
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31.
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥॥
शंकराचार्य जी ने हर दिन भगवान शंकर का ध्यान किया मगर आपको स्मरण नहीं किया।
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32.
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछतायो॥
हे माँ ! शंकराचार्य जी यह बात समझ ही नहीं पाए कि आप ही आदि शक्ति हैं। जब उनकी शक्तियां छिन गई, तब मन ही मन उन्हें पछतावा हुआ । फिर आपकी शरण लेकर आपके यश का गुणगान किया।
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33.
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
हे माँ ! जब शंकराचार्य जी को आपकी शक्तियों का अहसास हुआ, तब वह आपकी शरण में आए और आपके भक्त बन गए।
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34.
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
हे माँ ! आपने शंकराचार्य जी से प्रसन्न होकर उनकी सभी शक्तियां उन्हें वापस लौटा दी थीं।
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35.
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरे दुख मेरो॥
हे माँ ! मुझे भी ढेरों कष्टों ने घेर रखा है। इन कष्टों को केवल आप ही दूर कर सकती हैं।
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36.
आशा तृष्णा निपट सतावें।
मोह मदादिक सब विनशावें॥
नई-नई आशाएं और ज्यादा से ज्यादा मिलने की प्यास मुझे सदैव सताती रहती है। मेरे अंदर क्रोध,मोह, अहंकार, काम और ईर्ष्या जैसे भाव भी हैं, जो हर घड़ी मुझे परेशान करते हैं।
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37.
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
हे देवी! मैं आपका ध्यान करता हूं और आपसे विनती करता हूं कि आप इन सभी शत्रुओं का नाश कर दें।
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38.
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥
हे दया की देवी! मुझ पर अपनी कृपा बरसाओ और मुझे ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करके मेरे जीवन को सफल बना दो।
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39.
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
हे माता! मैं अपनी आखिरी सांस तक आपके ही गुणगान गाऊंगा, बस आप मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें।
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40.
दुर्गा चालीसा जो नित गावै।
सब सुख भोग परम पद पावै॥
जो व्यक्ति नियमित दुर्गा चालीसा का पाठ करता है, उसे हर सुख की प्राप्ति होती है और परम आनंद मिलता है।
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41.
देविदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
हे माता रानी! हमें अपनी शरण में ले लीजिए और हम पर अपनी कृपा बनाए रखिए।
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